प्राकृतिक चिकित्सा वास्तव में एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमे बिना दवा के किसी भी रोग को ठीक करने की शक्ति निहीत है।
प्राकृतिक चिकित्सा वास्तव में एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमे बिना दवा के किसी भी रोग को ठीक करने की शक्ति निहीत है। वास्तव में प्रकृति ने हमे जिस रूप में जन्म दिए है, उसके अनुरूप चल कर ही हम पूर्णतः सुरक्षित एवं स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते है।
हमारे खान-पान, रहन-सहन एवं आचार-विचार के अनुसार ही हमारा शरीर कार्य करता है एवं विभिन्न दोषों के उत्पन्न होने पर प्रारम्भ में तो हम चिंता रहित रहते है एवं शरीर में उत्पन्न विजातीय द्रवियो की अवहेलना करते है, लेकिन फिर धीरे-धीरे शरीर में रुग्णता के लक्षण स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते है। ऐसी अवस्था में हम तुरंत रोग मुक्त होना चाहते है और डॉक्टर के पास इलाज के लिए चले जाते है। इस प्रकार रोग को दूर करने के लिए दी गई दवाइयों से अक्सर शरीर पर उचित असर नहीं पड़ता। शरीर की वर्तमान बीमारी तो कई बार ठीक हो जाती है किन्तु प्रयुक्त दवाओं से अन्य बीमारियों को निमंत्रण मिल जाता है।
प्राक्रतिक तौर पर देखा जाए तो शरीर पर हर क्षण रोगाणुओं का आक्रमण होता रहता है, किन्तु शरीर अपनी प्रतीक्षा प्रणाली से स्वयं उसे ठीक करने का कार्य करता है और तीव्र रोग के रूप में सिग्नल भी देता है। हमारी जन्मजात जीवनी शक्ति ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को जन्म देती है।
प्राकृतिक चिकित्सा का उद्भव भी प्रकृति के इन पांच तत्वों - आकाश , वायु , अग्नि , जल एवं पृथ्वी द्वारा ही हुआ है। इनमें से किसी भी तत्व की कमी अथवा अधिकता हमारे शरीर पर विपरीत प्रभाव डालती । फलस्वरूप रोगों की उत्पत्ति होती है। इन तत्वों के असंतुलन से ही शरीर में विजातीय द्रव्यों का शरीर में प्रवेश हो जाता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन पांच तत्वों का संतुलित होना आवश्यक है।
आधुनिक युग में हमने प्रकर्ति का जबरदस्त दोहन किया है और इसका उपयोग स्वयं के लिए न हो कर भौतिक सुख-सुविधाओं और भोग-विलासित के लिए हो रहा है जिससे मानव विनाश की ओर बढ़ रहा है। हमें प्राकृतिक चिकित्सा को लोप होने से बचाना है ओर इसके सिद्धांतों को अपनाकर स्वस्थ एवं आनंदमयी जीवन अपनाना है। महात्मा गाँधी के अनुसार - "प्राकृतिक चिकित्सा पद्यति से रोग मिट जाने के साथ ही रोगी के लिए ऐसी जीवन पद्यति का आरम्भ होता है, जिसमें पुनः रोग के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। "
पं. श्री राम आचर्य जी का कथन है " प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ है प्राकृतिक पदार्थों विशेषतः प्रकृति के पांच मूल तत्वों द्वारा स्वास्थ्य रक्षा ओर रोग निवारक उपाए करना। "
वास्तव में, प्राकृतिक चिकित्सा जीवन जीने की एक उत्तम कला है जिसका पालन कर हम अपने शरीर का शुद्धिकरण का इसकी स्वयस्था को बरक़रार रख सकते हैं, ओर आनंदमयी जीवन जी सकते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा अपने दस मूलभूत सिद्धांत के आधार पर प्रयोग में लाई जा रही हैं जो विभिन्न प्रकार से हैं :-
1. सभी रोग एक, कारण एक तथा उनकी चिकित्सा एक हैं।
2. रोगों का कारण कीटाणु नहीं।
3. तीव्र रोग , शत्रु नहीं , मित्र होता हैं।
4. प्रकृति स्वयं चिकित्सा है।
5. चिकित्सा रोग की नहीं, अपितु रोगी के पुरे शरीर की होती है।
6. प्राकृतिक चिकित्सा में रोग निदान की विशेष आवयश्कता नहीं।
7. जीर्ण रोगों की ठीक होने में समय लगता है।
8. प्राकृतिक चिकित्सा से दबे रोग उभरते हैं।
9. प्राकृतिक चिकित्सा में मन , शरीर ओर आत्मा तीनों की चिकित्सा एक साथ की जाती हैं।
10. प्राकृतिक चिकित्सा में उत्तेजक औषधियों का कोई स्थान नहीं हैं।
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